- दिनेश ठाकुर
किसी भी देश में विदेशी घुसपैठ न सिर्फ सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती है, बल्कि उस देश की सामाजिक और आर्थिक संरचना पर भी प्रतिकूल असर डालती है। भारत में घुसपैठियों की समस्या आजादी के बाद से चल रही है, जो 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद और गंभीर होती गई। बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी आबादी असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के अलावा कुछ और राज्यों में फैलती गई। भारत की नागरिकता नहीं होने के बावजूद इनमें से कई घुसपैठियों ने राशन कार्ड, आधार और वोटर कार्ड तक बनवा लिए। भारत की तरह कई दूसरे देशों के लिए भी घुसपैठिए सिरदर्द बने रहे हैं। सत्तर के दशक में रोजगार के लिए चोरी-छिपे ब्रिटेन पहुंचने वाले भारतीयों को भी वहां घुसपैठिए बताकर खदेड़ा जाता था। इस समस्या पर देव आनंद ( Dev Anand ) ने 1978 में 'देस परदेस' ( Desh Pardesh ) बनाई। यह टीना मुनीम ( Tina Munim ) की पहली फिल्म थी, तो देव आनंद की आखिरी कामयाब फिल्म। इसके बाद उन्होंने जितनी फिल्में बनाईं (स्वामी दादा, लूटमार, आनंद और आनंद, हम नौजवान, अव्वल नंबर), सभी घाटे का सौदा रहीं।
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'देस परदेस' में भारत से ब्रिटेन जाने वालों की कहानी
'देस परदेस' में पंजाब के ऐसे लोगों की दुर्दशा की तस्वीर पेश की गई, जो दलालों के जरिए नाजायज ढंग से ब्रिटेन पहुंचे थे। उन्हें वहां नौकरी का झांसा दिया गया था। न नौकरी मिलती है और न भारत लौटने की सूरत नजर आती है। वहां की पुलिस से बचने के लिए उन्हें गंदी बस्ती के सीलन भरे मकानों में दिन काटने पड़ते हैं। फिल्म में प्राण ने देव आनंद के बड़े भाई का किरदार अदा किया था, जो लंदन में पब चलाते थे। वहां उनकी हत्या कर दी जाती है। 'देस परदेस' को राजेश रोशन की धुनों वाले गानों (जैसा देश वैसा भेष, नजर लगे न साथियों, नजराना भेजा किसी ने प्यार का, आप कहें और हम न आएं) के लिए भी याद किया जाता है।
नतालिया श्याम की 'फुटप्रिंट्स ऑन वाटर'
देव आनंद की फिल्म के 42 साल बाद ब्रिटेन में विदेशी घुसपैठ पर वहां बसीं भारतीय मूल की फिल्मकार नतालिया श्याम ( Nimisha Sajayan ) 'फुटप्रिंट्स ऑन वाटर' ( Footprints on Water Movie ) नाम की फिल्म बना रही हैं। 'देस परदेस' में देव आनंद अपने भाई की तलाश में ब्रिटेन पहुंचे थे, 'फुटप्रिंट्स ऑन वाटर' में आदिल हुसैन अपनी बेटी को तलाशते हुए ब्रिटेन पहुंचते हैं और वहां की पुलिस उनके पीछे पड़ जाती है। मलयालम अभिनेत्री निमिषा ( Nimisha Sajayan ) बेटी का किरदार अदा करेंगी। श्रीदेवी की 'मॉम' और हाल ही प्रकाश झा की 'परीक्षा' में नजर आए आदिल हुसैन हॉलीवुड की कुछ फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। वे असम के हैं, इसलिए घुसपैठियों की समस्या को अच्छी तरह समझते हैं।
कनाडा या ब्रिटेन में जाने वालों पर 'सुर्खाब'
पांच साल पहले आई निर्देशक संजय तलरेजा की 'सुर्खाब' का ताना-बाना कनाडा में विदेशी घुसपैठ के इर्द-गिर्द बुना गया था। इसकी जूडो चैम्पियन नायिका (बरखा मदान) छेड़छाड़ करने वाले एक मंत्री के बेटे की धुनाई कर चोरी-छिपे पंजाब से कनाडा पहुंचती है, जहां उसे कदम-कदम पर समस्याओं से जूझना पड़ता है। यह फिल्म भारत के उन नौजवानों के लिए सबक है, जिन्हें लगता है कि कनाडा या ब्रिटेन में सुनहरा भविष्य उनका इंतजार कर रहा है। बरसों से सूफी रचना 'प्रीतम प्रीत लगाय के दूर देश मत जा/ बसो हमारी नागरी, हम मांगे तू खा' भी यही समझा रही है कि जमीन बदलने से हर किसी के लिए किस्मत के ताले नहीं खुलते। मजबूत इरादों और कड़ी मेहनत से अपनी जमीन पर भी हरा-भरा हुआ जा सकता है।
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