— दिनेश ठाकुर
यूनान में 'इरोज' को प्रेम की देवी माना जाता है। तेरह साल पहले आई ताइवान की फिल्म 'हेल्प मी इरोज' में दिखाया गया था कि बढ़ते शहरीकरण ने आदमी की प्रेम की अनुभूतियों को किस तरह अतृप्त इच्छाओं में तब्दील कर दिया है कि वह 'देवी' के बजाय 'देवियों' के पीछे भागने में उम्र और ऊर्जा खर्च कर देता है। फिर भी कुछ हासिल नहीं होने की कुंठाएं उसे जुर्म, हिंसा और नशे की तरफ धकेलती हैं। 'हेल्प मी इरोज' की कहानी ताइवान के शहरों का ही सच नहीं है, यह दुनिया के हर शहर का सच है। जिस रफ्तार से शहरों का भौगोलिक दायरा बढ़ रहा है, गांव भी इन बुराइयों की चपेट में आते जा रहे हैं। इसकी झलक दो साल पहले आई मराठी फिल्म 'मुलशी पैटर्न' में देखने को मिली थी। फिल्म में पुणे जिले के मुलशी गांव के किसानों का किस्सा है, जो रातों-रात अमीर बनने के चक्कर में अपने खेत और जमीन बेच देते हैं। अचानक मिली दौलत ज्यादा दिन नहीं टिकती। फाके की नौबत आने पर एक किसान का बेटा शातिर मुजरिम बन जाता है। मुलशी की तरह देश के कई और गांव इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
'मुलशी पैटर्न' को हिन्दी में 'गन्स ऑफ नॉर्थ' ( Guns of North Movie ) नाम से बनाने की तैयारियां चल रही हैं, जिसमें सलमान खान ( Salman Khan ) और उनके बहनोई आयुष शर्मा ( Aayush Sharma ) अहम किरदार अदा करेंगे। मूल फिल्म में किसान का किरदार अदा करने वाले महेश मांजरेकर ( Mahesh Manjrekar ) 'गन्स ऑफ नॉर्थ' के निर्देशक होंगे, जो 'वास्तव', 'अस्तित्व', 'पिता' और 'सिटी ऑफ गोल्ड' जैसी फिल्में बना चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे इस फिल्म में भारतीय गांव और किसानों की उसी तरह सही तस्वीर पेश करेंगे, जैसी 'मुलशी पैटर्न' में दिखाई गई।
यह भी पढ़ें: — कपिल शर्मा का नया शो 12 अक्टूबर से, अलग अवतार में नजर आएंगे कॉमेडियन
कृषिप्रधान भारत में आज भी शहरों के मुकाबले गांवों की आबादी ज्यादा (65.53 फीसदी) है। फिर भी हिन्दी फिल्मों में गांव और किसानों की कहानियां काफी घट गई हैं। किसी जमाने में ख्वाजा अहमद अब्बास की 'धरती के लाल', महबूब खान की 'मदर इंडिया', बिमल रॉय की 'दो बीघा जमीन' और बासु भट्टाचार्य की 'तीसरी कसम' में भारतीय गांव धड़कते-से महसूस हुए थे। कृष्ण चंदर की कहानी 'अन्नदाता' पर आधारित 'धरती के लाल' में 1943 के बंगाल के सूखे का मार्मिक माहौल था। यह दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हमारे गांवों की सामाजिक और आर्थिक दशा का दस्तावेज भी है। बाद की कई फिल्मों में गांव की तस्वीरें 'मेरे देश में पवन चले' या 'परी रे तू कहां की परी' सरीखे गीतों तक सीमित रह गई।
दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान जय किसान' पर बनी मनोज कुमार की 'उपकार' में जरूर गांव और किसान पूरी ताकत के साथ नजर आए। बाद में मनोज कुमार की देशभक्ति का रुख विदेश (पूरब और पश्चिम), शहर (रोटी, कपड़ा और मकान) तथा इतिहास (क्रांति) की तरफ ज्यादा रहा। गांव और किसानों पर आमिर खान की 'लगान' भी यादगार फिल्म है। ब्रिटिश हुकूमत के दौर की पृष्ठभूमि वाली इस फिल्म में अपने हक के लिए गांव के किसान एकजुट होकर जिस तरह संघर्ष करते हैं, वह किसानों की जुझारू तबीयत, हौसले और हिम्मत की मिसाल है। इसी हौसले पर जमील मजहरी ने फरमाया है- 'ये अब्र (मेघ) जो घिर कर आता है, गर आज नहीं कल बरसेगा/ सब खेत हरे हो जाएंगे, जब टूटके बादल बरसेगा।'
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3n7ZZKk
No comments: