test

Rajesh Khanna की 'कटी पतंग' के 50 साल, विदेशी कहानी भारतीय रंग में

-दिनेश ठाकुर
राजेश खन्ना ( Rajesh Khanna ) की 'कटी पतंग' ( Kati Patang Movie ) के प्रदर्शन के 29 जनवरी को 50 साल पूरे हो रहे हैं। सिनेमाघरों में इस फिल्म ने क्या धूम मचाई थी। 'कटी पतंग' ही क्यों, 1971 में एक के बाद एक राजेश खन्ना की आठ फिल्में सिनेमाघरों में पहुंची थीं। इनमें एक तरफ क्लासिक 'आनंद' थी, तो दूसरी तरफ सबसे ज्यादा कारोबार करने वाली 'हाथी मेरे साथी'। जिन्होंने राजेश खन्ना की धुआंधार कामयाबी का वह दौर देखा है, इस तथ्य से सहमत होंगे कि किसी दूसरे सितारे के प्रति वैसी दीवानगी, वैसा होश उड़ाने वाला जुनून देखने को नहीं मिला। न भूतो न भविष्यति।

यह भी पढ़ें : कन्फर्मः कपिल शर्मा शो होने जा रहा बंद, कपिल ने खुश होकर बताई असली वजह

आर.डी. बर्मन की धुनों का जादू
राजेश खन्ना के सितारे बुलंद करने वाली 'आराधना' के बाद निर्देशक शक्ति सामंत के साथ 'कटी पतंग' उनकी एक और कामयाब फिल्म है। 'आराधना' में एस.डी. बर्मन की धुनों ने कामयाबी के सुनहरे पंख लगाए थे, तो 'कटी पतंग' में उनके पुत्र आर.डी. बर्मन की धुनों ने जादू जगाए। 'ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए', 'ये जो मोहब्बत है', 'प्यार दीवाना होता है' और 'जिस गली में तेरा घर न हो बालमा' सुनकर आज भी नहीं लगता कि इनके जादू की लौ बुझ गई हो। तपिश भी बरकरार है, कशिश भी। फिल्म में एक होली गीत 'आज न छोड़ेगे' ने भी काफी धूम मचाई थी। इसके एक अंतरे में आनंद बख्शी कितनी सादगी से गहरी बात लिख गए- 'ऐसे नाता तोड़ गए हैं, मुझसे ये सुख सारे/ जैसे जलती आग किसी बन में छोड़ गए बंजारे।' फिल्मों में अपना सूरज ढलने के बाद राजेश खन्ना को यह अंतरा खुद के हाल की तर्जुमानी लगता होगा।

हॉलीवुड की 'नो मैन ऑफ हर ओन' की कहानी भी यही थी
'कटी पतंग' लुगदी साहित्य के सरताज गुलशन नंदा के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। जैसे हमारे फिल्मकार विदेशी फिल्मों पर हाथ मारने में माहिर हैं, उसी तरह कुछ लेखक भी 'प्रेरणा' के लिए विदेशी किताबें टटोलते रहे हैं। अमरीकी लेखक विलियम आइरिश ने 1948 में 'आइ मैरिड अ डैड मैन' नाम का उपन्यास लिखा था। हॉलीवुड में इस पर 1950 में फिल्म बनी- 'नो मैन ऑफ हर ओन।' जनाब गुलशन नंदा ने या तो आइरिश के उपन्यास से कथानक उठाया था या हॉलीवुड की फिल्म से।

यह भी पढ़ें : 10 साल छोटे अली गोनी के प्यार में मां सोनाली फोगाट, बेटी ने दिया ऐसा रिएक्शन

आशा पारेख ने पहली बार जीता फिल्मफेयर अवॉर्ड
बहरहाल, 'टेलरमेड' घटनाओं वाली 'कटी पतंग' की कामयाबी में सबसे बड़ा हाथ राजेश खन्ना के दौर का था। उनकी मौजूदगी मामूली कहानी वाली फिल्म को भी गैर-मामूली बना देती थी। जैसा कि सलीम गिलानी का शेर है- 'आपके नाम से ताबिंदा (प्रकाशमान) है उनवाने-हयात (जीवन शैली) / वर्ना कुछ बात नहीं थी मेरे अफसाने में।' राजेश खन्ना और आशा पारेख की जोड़ी 'कटी पतंग' से पहले 'बहारों के सपने' (1967) में साथ आई थी। 'चुनरी संभाल गोरी', 'आजा पिया तोहे प्यार दूं' और 'क्या जानूं सजन' जैसे सदाबहार गीतों के बावजूद 'बहारों के सपने' घाटे का सौदा रही, क्योंकि तब राजेश खन्ना सुपर स्टार नहीं हुए थे। इस जोड़ी ने उस घाटे की भरपाई 'कटी पतंग' में सूद समेत की। आशा पारेख ने फिल्म के लिए पहली बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता। राजेश खन्ना को उस साल 'आनंद' के लिए इस अवॉर्ड से नवाजा गया। उनकी एक्टिंग के साथ-साथ हर लिहाज से 'आनंद' बेहतरीन फिल्म है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/39qRpRW
Rajesh Khanna की 'कटी पतंग' के 50 साल, विदेशी कहानी भारतीय रंग में Rajesh Khanna की 'कटी पतंग' के 50 साल, विदेशी कहानी भारतीय रंग में Reviewed by N on January 29, 2021 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.