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एस.एच. बिहारी के 'कश्मीर की कली' के लिए लिखे नौ रत्नों जैसे नौ गीत

-दिनेश ठाकुर
आरा (बिहार) में पैदा हुए शमसुल हुदा ( Shamsul Huda ) 24-25 साल की उम्र में बतौर शायर उभर रहे थे। दोस्तों ने सलाह दी कि उन्हें फिल्मों में आजमाइश करनी चाहिए। पचास के दशक के शुरू में वह एस.एच. ( H. S. Bihari ) बिहारी नाम धारण कर मुम्बई पहुंचे। हिन्दी फिल्म संगीत के सुनहरे दौर की इब्तिदा हो चुकी थी। एस.एच. बिहारी ने कुछ फिल्मों के गीत लिखे, लेकिन शुरुआत में कामयाबी उनसे कटी-कटी रही। उनका हुनर चमका 1954 की 'शर्त' से। इस फिल्म में हेमंत कुमार की धुनों ने उनके गीतों को धन्य कर दिया। 'न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे' और 'देखो वो चांद छिपके करता है क्या इशारे' हर किसी के होठों की गुनगुनाहट बन गए। गायक-संगीतकार हेमंत कुमार के लिए उन्होंने 'एक झलक', 'यहूदी की लड़की', 'हिल स्टेशन' आदि के लिए भी कई उम्दा गीत लिखे।

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तेरे सुर और मेरे गीत
गीतकार और संगीतकार के बीच बेहतर तालमेल हो, तो सदाबहार गीत रचना आसान हो जाता है। एस.डी. बर्मन और साहिर, नौशाद और शकील बदायूंनी, शंकर-जयकिशन और शैलेंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आनंद बख्शी आदि की जुगलबंदी ने जो कमाल किए, उन्हीं कमाल के लिए ओ.पी. नैयर और एस.एच. बिहारी की जुगलबंदी को याद किया जाता है। शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की 'कश्मीर की कली' में यह जुगलबंदी चरम पर रही। इस फिल्म का हर गीत अपने आप में खजाना है। नौ रत्नों जैसे नौ गीत, जो किसी भी म्यूजियम की शान बढ़ा सकते हैं। क्या 'ये चांद-सा रोशन चेहरा', क्या 'इशारों-इशारों में दिल लेने वाले', क्या 'दीवाना हुआ बादल' और क्या 'है दुनिया उसी की, जमाना उसी का।'

गीतों में सादगी भी, गहराई भी
एस.एच. बिहारी और ओ.पी. नैयर ने यही सुरीला कारनामा 'सावन की घटा' में दोहराया। इस फिल्म के 'जुल्फों को हटा ले चेहरे से', 'आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया', 'मेरी जान तुमपे सदके' और 'हौले-हौले चलो मोरे साजना' आज भी सुनने वालों की धड़कनें बढ़ा देते हैं। बिहारी मोहब्बत के शायर थे। मोहब्बत के तमाम रंग और आयाम उनके गीतों में झिलमिलाते हैं। इन गीतों में सादगी भी है, गहराई भी। इसलिए 'न जाने क्यों हमारे दिल को तुमने दिल नहीं समझा', 'मेरा प्यार वो है','मुझे देखकर आपका मुस्कुराना', 'लाखों हैं यहां दिलवाले', 'वो हंसके मिले हमसे', 'ये दिल लेके नजराना', 'चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया', 'तुमसे मिलकर न जाने क्यों' में सुनने वालों को अपने ही दिल की आवाज महसूस होती है।

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आखिरी दौर में 'रस्ते का माल सस्ते में'
एस.एच. बिहारी को ओ.पी. नैयर 'शायर-ए-आजम' (महान शायर) कहा करते थे। सत्तर के दशक में नैयर का कॅरियर ढलने के बाद बिहारी ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए 'प्यार झुकता नहीं', 'तेरी मेहरबानियां', 'नसीब अपना-अपना', 'असली-नकली', 'कसम सुहाग की', 'मजलूम', 'औलाद', 'जवाब हम देंगे', 'जनम जनम' आदि फिल्मों के लिए गीत लिखे। 'मुद्दत' में बप्पी लाहिड़ी के लिए लिखा गया 'प्यार हमारा अमर रहेगा' पसंद किया गया। लेकिन एक्शन फिल्मों के दौर में गीत-संगीत का रंग-रूप काफी बदल चुका था। खुद को दौड़ में बनाए रखने के लिए एस.एच. बिहारी को आखिरी दौर में 'रस्ते का माल सस्ते में' (औलाद) और 'दिल मेरा चुटकी बजाके ले चली' (दो कैदी) जैसे गीत लिखने पड़े। न लिखते तो शायद किसी टीवी शो में उनकी आर्थिक तंगी की प्रायोजित नुमाइश की जाती। टीआरपी बढ़ाने का यह आसान शॉर्ट कट है।



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एस.एच. बिहारी के 'कश्मीर की कली' के लिए लिखे नौ रत्नों जैसे नौ गीत एस.एच. बिहारी के 'कश्मीर की कली' के लिए लिखे नौ रत्नों जैसे नौ गीत Reviewed by N on February 24, 2021 Rating: 5

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