-दिनेश ठाकुर
दक्षिण में 'चिन्ना कुइल' (नन्ही कोयल) के तौर पर मशहूर के.एस. चित्रा ( K. S. Chitra ) को पद्म भूषण ( Padam Bhushan ) से अलंकृत करने का ऐलान किया गया है। सोलह साल पहले पद्मश्री से अलंकृत हो चुकीं चित्रा के लिए इस बार का अलंकरण इसलिए खास है कि उनके गुरु एस.पी. बालासुब्रमण्यम को भी मरणोपरांत पद्म विभूषण से अलंकृत किया जाएगा। शायद यह पहला मौका होगा, जब गुरु-शिष्या के मुकुट में एक ही मंच से नए मोरपंख सुशोभित होंगे।
सलमान खान की 'लव' से उत्तर भारत पहुंची आवाज
इश्क और मुश्क (प्रेम और गंध) की तरह प्रतिभाएं भी छिपी नहीं रहतीं। भूगोल के फासले मिटाने में उन्हें कुछ वक्त जरूर लग सकता है। के.एस. चित्रा के स्वर की सुरीली नदी दक्षिण में अस्सी के दशक से बह रही थी। एक दशक बाद इस नदी के प्रवाह से उत्तर भारत भी धन्य हो गया। सलमान खान और रेवती की 'लव' (1991) चित्रा की पहली हिन्दी फिल्म है। तेलुगु की 'प्रेमा' के इस रीमेक में एस.पी. बालासुब्रमण्यम के साथ उनके 'साथिया तूने क्या किया' की लोकप्रियता एक तरह से मुनादी थी कि हिन्दी सिनेमा में भी चित्रा की आवाज दूर और देर तक कायम रहने वाली है।
हिन्दी फिल्मों में लोकप्रिय गीत
हिन्दी फिल्मों में अब तक वह करीब 200 गीत गा चुकी हैं। इनमें स्वर और सुरों की खिली-खिली चांदनी वाले 'ये हसीं वादियां' (रोजा), रूप सुहाना लगता है (द जेंटलमैन), कहना ही क्या (बॉम्बे), तू मिले दिल खिले (क्रिमिनल), चुप तुम रहो (इस रात की सुबह नहीं), जहां पिया वहां मैं (परदेस), पायलें चुनमुन चुनमुन (विरासत), हम तुमसे न कुछ कह पाए (जिद्दी), रात का नशा (अशोका), ख्वाबों ख्यालों ख्वाहिशों को चेहरा मिला (कोई मिल गया), कसम की कसम है कसम से (मैं प्रेम की दीवानी हूं), रात हमारी तो चांद की सहेली है (परिणीता), जागे हैं देर तक (गुरु) जैसे दर्जनों गीत शामिल हैं। इनमें चित्रा की आवाज बारिश के बाद हरी-भरी वादियों से गुजरते झरने जैसी लगती है। इसमें तरंग भी है, उमंग भी, गहराई भी है, उत्तंग (विशेष ऊंचाई) भी।
कई अवॉर्ड जुड़ चुके हैं नाम के साथ
के.एस. चित्रा ने 1980 में मलयालम फिल्मों से सुरीला सफर शुरू किया था। तब शायद उन्होंने भी कल्पना नहीं की होगी कि उनकी आवाज तमाम सरहदें लांघकर दुनियाभर में छा जाएगी। जाने कितने सम्मान इस खनखनाती आवाज के साथ जुड़ चुके हैं। छह नेशनल अवॉर्ड, आठ फिल्मफेयर अवॉर्ड, विभिन्न राज्यों के 36 फिल्म अवॉड्र्स। ब्रिटिश संसद में सम्मानित होने वाली वह पहली भारतीय गायिका हैं। चार दशक के दौरान वह विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में 25 हजार से ज्यादा गाने गा चुकी हैं। फिलहाल वह क्रीज पर हैं। यानी यह स्कोर काफी आगे जाने वाला है।
उत्तर भारत में दक्षिण की गायिकाओं का सफर
दक्षिण से समय-समय पर कई महिला स्वर हिन्दी फिल्मों में गूंजते रहे हैं। इनमें से ज्यादातर की गूंज सीमित रही। मसलन सत्तर के दशक में वाणी जयराम 'बोले रे पपीहरा' से नई चमक के साथ उभरी थीं। उन्होंने हेमा मालिनी की 'मीरा' में भी कुछ सुरीले भजन गाए। लेकिन बाद में उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले। इसी तरह एस. जानकी ने भी हिन्दी फिल्मों में कई गीत गाए। उनके 'यार बिना चैन कहां रे' (साहेब), 'तूने मेरा दूध पीया है' (आखिरी रास्ता), 'सुन रूबिया' (मर्द) जैसी लोकप्रियता दूसरे गीतों को नहीं मिली। कर्नाटक में जानकी को 'गाना कोगिले' (गाती हुई कोयल) कहा जाता है। वह चित्रा से काफी वरिष्ठ हैं। विभिन्न भाषाओं में करीब 53 हजार गीत गा चुकी हैं। चार बार नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुकी हैं। उन्होंने 2013 में पद्म भूषण लेने से इनकार कर दिया था।
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