-दिनेश ठाकुर
रचनाधर्मिता पर डॉ. बशीर बद्र ने मार्के की बात कही है- 'चमकती है कहीं सदियों में आंसुओं से जमीं/ गजल के शेर कहां रोज-रोज होते हैं।' यानी महत्वपूर्ण यह नहीं है कि किसने कितना रचा। महत्वपूर्ण यह है कि क्या रचा और कैसा रचा। सलीके से बुनी गईं चंद रचनाएं ही किसी फनकार को अमर करने के लिए काफी हैं। कमाल अमरोही ने बतौर निर्देशक सिर्फ चार फिल्में बनाईं- 'महल', 'दायरा', 'पाकीजा' और 'रजिया सुलतान'। इनको लेकर उनकी गिनती भारत के महान फिल्मकारों में होती है। इसलिए कि चारों फिल्मों में मौलिकता है, भावनाओं का सुरीला तालमेल है और वह तकनीकी भव्यता है, जो भारतीय सिनेमा को कमाल अमरोही ( Kamal Amrohi ) की देन है। उनकी 'महल' ने विश्व सिनेमा को पुनर्जन्म का फार्मूला दिया। इसी फिल्म से लता मंगेशकर और मधुबाला के जादू की असली शुरुआत हुई।
जॉन एलिया और रईस अमरोहवी थे चचेरे भाई
कमाल अमरोही तबीयत और फितरत से शायर थे। दो महान शायर जॉन एलिया और रईस अमरोहवी उनके चचेरे भाई थे। कमाल अमरोही की शायरी ने ही मीना कुमारी को उनकी तरफ आकर्षित किया। प्रेम कहानी के अंकुर फूटे। इस कहानी को बाद में कई त्रासद मोड़ से गुजरना था। अक्सर ख्याल आता है कि शायर होते हुए भी कमाल अमरोही ने अपने नगमों, नज्मों, गजलों से फिल्म संगीत को मालामाल करने में किफायत क्यों बरती? कम से कम अपनी फिल्मों में तो वह यह कमाल कर सकते थे। लेकिन गिनती की फिल्मों की तरह उनके फिल्मी गीत भी गिनती के हैं। 'पाकीजा' के लिए उन्होंने दो रचनाएं लिखी थीं। इनमें से 'मौसम है आशिकाना' का ही इस्तेमाल किया गया। दूसरी रचना 'तनहाई सुनाया करती है, कुछ बीते दिनों का अफसाना/ वो पहली नजर का टकराना, इक दम से वो दिल का थम जाना' (लता मंगेशकर) फिल्म में शामिल नहीं की गई। दरअसल, 'पाकीजा' के लिए 20 गीत तैयार किए गए थे। इनमें से 11 फिल्म में रखे गए। बाकी नौ गीत 'पाकीजा रंग-बरंग' नाम के रिकॉर्ड में जारी किए गए थे।
कहीं एक मासूम नाजुक-सी लड़की...
कमाल अमरोही ने 'शंकर हुसैन' में मासूम-सी रूमानी नज्म 'कहीं एक मासूम नाजुक-सी लड़की/ बहुत खूबसूरत मगर सांवली-सी' (मोहम्मद रफी) लिखी। यह भी उनके कलाम के कमाल का पता देती है। इस नज्म की बेहिसाब लोकप्रियता के बावजूद कमाल अमरोही ने 'रजिया सुलतान' में कोई गीत नहीं लिखा। कागज के बजाय फिल्मी पर्दे पर शायरी जैसे दृश्य रचना उन्हें ज्यादा सुकून देता था।
अपने समय से काफी आगे की फिल्म थी 'दायरा'
'दायरा' में सेल्यूलाइड पर शायरी का हुनर रील-दर-रील महसूस किया जा सकता है। यह अपने समय से काफी आगे की फिल्म थी। इसलिए कारोबारी कामयाबी से वंचित रही। फिल्म की नायिका (मीना कुमारी) की शादी उम्र में काफी बड़े व्यक्ति से कर दी जाती है। बीमार पति को लेकर वह एक हवेली में पनाह लेती है। हवेली के मालिक के बेटे (नासिर खान) को नायिका से हमदर्दी है। सामाजिक बंधनों का दायरा उसे प्रेमिल भावनाएं व्यक्त नहीं करने देता। इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म के धूसर रंगों वाले कई दृश्य दिल छूते हैं। पूरी फिल्म में पेड़ पर चलती आरी नायिका के घने दर्द को प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति देती रहती है। एक भजन 'देवता तुम हो मेरा सहारा' रह-रहकर अंधेरे में उजाले की तरह उभरता रहता है।
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