-दिनेश ठाकुर
ईरान मूल की अभिनेत्री एलनाज नोरौजी ( Elnaaz Norouzi ) ने बड़े अरमान से हिन्दी फिल्मों में कदम रख दिया है। वैसे वे काफी समय से भारत की मनोरंजन इंडस्ट्री में सक्रिय हैं। भारतीय वेब सीरीज 'सेक्रेड गेम्स' ( Secred Games ) में वे जोया के किरदार में नजर आई थीं। हॉकी की पृष्ठभूमि पर बनी पंजाबी फिल्म 'खिद्दो खुंडी' (गेंद और हॉकी) में भी वे काम कर चुकी हैं। निर्देशक जयदीप चोपड़ा (माजी, 2016- द एंड) की 'संगीन' ( Sangeen Movie ) उनकी पहली हिन्दी फिल्म होगी, जिसके नायक नवाजुद्दीन सिद्दीकी ( Nawazuddin Siddiqui ) हैं। दोनों 'सेक्रेड गेम्स' में भी साथ थे। एलनाज नौरोजी मॉडल भी हैं और भारत में रहते हुए उतनी कामचलाऊ हिन्दी सीख चुकी हैं, जितनी ब्रिटेन मूल की कैटरीना कैफ और श्रीलंका मूल की जैकलीन फर्नांडिस को आती है। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो 'संगीन' की शूटिंग अगले साल जनवरी में शुरू हो जाएगी। इसे लंदन और मुम्बई में फिल्माए जाने की योजना है।
फर्राटे से बोलती हैं अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच
मंदाना करीमी ( Mandana Karimi ) के बाद एलनाज नोरौजी हिन्दी फिल्मों से जुडऩे वाली ईरान की दूसरी अभिनेत्री हैं। ईरानी पिता और भारतीय मां की पुत्री मंदाना करीमी 'भाग जॉनी', 'रॉय', 'मैं और चार्ल्स' तथा 'क्या कूल हैं हम 3' में काम कर चुकी हैं। वे टीवी शो 'बिग बॉस 9' की दूसरी रनर-अप रही थीं। इसी साल जून में जी5 पर स्ट्रीम हुई हार्दिक गज्जर और तुषार भाटिया की वेब सीरीज 'द केसिनो' से वे डिजिटल डेब्यू भी कर चुकी हैं। मंदाना करीमी कभी एयर होस्टेस हुआ करती थीं। यह नौकरी छोड़कर वे वाया मॉडलिंग मनोरंजन इंडस्ट्री में आईं। दूसरी तरफ ईरान में पैदा हुईं एलनाज नोरौजी की पढ़ाई-लिखाई जर्मनी में हुई। जर्मनी में एक साल थिएटर की ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने एक्टिंग सीखने के लिए भारत में विभिन्न वर्कशॉप में हिस्सा लिया। अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच वे फर्राटे से बोलती हैं, लेकिन इसी रफ्तार से हिन्दी बोलने में उन्हें दिक्कत होती है।
ईरानी समुदाय काफी पहले सेे हिन्दी सिनेमा में सक्रिय
ईरान के हंसते हुए नूरानी चेहरे भले अब भारत पहुंचे हों, ईरानी समुदाय काफी पहले सेे हिन्दी सिनेमा में सक्रिय है। यह समुदाय बरसों पहले ईरान छोड़कर भारत में बस गया था। इसे पारसी समुदाय के नाम से जाना जाता है। भारत में इस समुदाय की आबादी करीब एक लाख है। इनमें से 70 फीसदी का ठिकाना मुम्बई है। हिन्दी सिनेमा के विकास में इस समुदाय का भी बड़ा योगदान है। भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' (1931) के निर्देशक आर्देशिर ईरानी इसी समुदाय के थे। उन्होंने बतौर निर्माता भारत की पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या' भी बनाई। पारसी थिएटर से फिल्मों में आए सोहराब मोदी के मिनर्वा मूवीटोन स्टूडियो ने 'पुकार', 'सिकंदर', 'मिर्जा गालिब' और 'झांसी की रानी' जैसी यादगार फिल्में बनाईं।
बॉलीवुड के पारसी कलाकार
हिन्दी सिनेमा में इस समुदाय की दूसरी हस्तियों में होमी वाडिया, डेजी ईरानी, हनी ईरानी, परसिस खंबाटा, फारूक शेख, अरुणा ईरानी, शम्मी, बोमन ईरानी, अमायरा दस्तूर, पेरीजाद जोराबियन, तनाज ईरानी आदि शामिल हैं। जॉन अब्राहम पारसी मां के पुत्र हैं। जहां तक विदेशी मूल के कलाकारों की बात है, इनको लेकर हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में शुरू से 'मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है' और 'मैं देसी हूं तू परदेसी, लेकिन धड़कन है इक जैसी' वाला उदार भाव रहा है। हॉलीवुड के कई कलाकार भी समय-समय पर हिन्दी फिल्मों में नजर आते रहे हैं। पाकिस्तान को छोड़ किसी देश के कलाकारों के साथ 'इनसाइडर- आउटसाइडर' का हो-हल्ला कभी नहीं हुआ।
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