-दिनेश ठाकुर
शरर कश्मीरी फरमाते हैं- 'इधर फलक को है जिद बिजलियां गिराने की/ उधर हमें भी है धुन आशियां बनाने की।' धुन के पक्के इंसान के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। धुन हो तो रेगिस्तान में भी फूल खिलते हैं। अंधेरों में चिराग जलते हैं। हर बाधा को पार किया जा सकता है। अब्दुर्रहीम नश्तर का शेर है- 'पत्थर ने पुकारा था, मैं आवाज की धुन में/ मौजों (लहरों) की तरह चारों तरफ फैल गया हूं।' इसी तरह आवाज की धुन में तीजन बाई ( Teejan Bai ) का नाम दुनियाभर में फैल चुका है। महाभारत के छत्तीसगढ़ी लोकरूप पंडवानी की इस गायिका का हुनर आग में तपकर कुंदन हो गया। उन्हें कष्ट और मुसीबतों के कई पहाड़ लांघने पड़े। कभी वक्त ने उन्हें तंबूरा लेकर गनियारी (भिलाई) गांव की गलियों में भीख के लिए भटकाया, तो कभी गुजर-बसर के लिए उन्हें झाड़ू-चटाई बनाकर बेचनी पड़ीं। पंडवानी की धुन में उन्होंने वक्त का रुख मोड़ दिया। संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड के अलावा वह पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण से अलंकृत हो चुकी हैं। दुनियाभर में उन्हें आदर से बुलाया जाता है। अब उनकी बायोपिक की तैयारियां चल रही हैं।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पहल
फिल्मी सितारों, खिलाडिय़ों और राजनीतिज्ञों की बायोपिक का सिलसिला तो काफी समय से चल रहा है, शायद पहली बार फिल्म वालों का ध्यान किसी लोक कलाकार की तरफ गया है। पहल नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने की है, जो तीजन बाई के पुराने मुरीद हैं। बायोपिक में तीजन बाई का किरदार विद्या बालन अदा करेंगी। विद्या बायोपिक विशेषज्ञ होती जा रही हैं। दक्षिण फिल्मों की सनसनी सिल्क स्मिता (द डर्टी पिक्चर) और गणितज्ञ शकुंतला देवी की बायोपिक के अलावा वह अभिनेता भगवान दादा की मराठी बायोपिक 'एक अलबेला' में गीता बाली के किरदार में नजर आ चुकी हैं।
नाना ब्रजलाल ने प्रेरित किया
तीजन बाई की बायोपिक में उनके नाना ब्रजलाल का भी अहम किरदार होगा। नाना से बचपन में सुनी गईं महाभारत की कहानियों ने ही तीजन बाई को पंडवानी गायन के लिए प्रेरित किया। जब गांव के लोग 'बहू-बेटियों की लाज-शर्म' की दुहाई देकर तीजन के गायन-वादन का विरोध कर रहे थे, तब नाना ने ही उन्हें 'मस्त रहो मन मस्ती में' का सबक सिखाया। उनका हौसला बिखरने नहीं दिया। बायोपिक में नाना का किरदार अमिताभ बच्चन को सौंपा जा सकता है। फिल्म में तीजन बाई के गांव गनियारी के कुछ ग्रे किरदार भी होंगे, जिन्होंने कभी गांव वालों को तीजन के खिलाफ इतना भड़काया था कि वे उनकी झोपड़ी में आग लगाने जा पहुंचे थे। आज तीजन बाई उसी गनियारी गांव की आंख का तारा हैं।
कापालिक शैली अपनाई तीजन बाई ने
महाभारत 18 पर्वों का महाकाव्य है। पंडवानी में इसकी कथा 18 दिन में पूरी होती है। तीजन बाई के उदय से पहले छत्तीसगढ़ के ही पूनाराम निषाद और झाड़ूराम देवांगन का पंडवानी गायन में बड़ा नाम था। इस गायन की दो शैलियां हैं- वेदमती और कापालिक। झाड़ूराम देवांगन वेदमती शैली के लिए मशहूर रहे, जबकि तीजन बाई ने कापालिक शैली अपनाई। उन्होंने नृत्य, अभिनय और लोकरंगों से इस शैली को नए आयाम दिए। जब वह तंबूरा बजाते हुए ओजस्वी स्वर में कथा सुनाती हैं, तो मीरा की तरह 'मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई' के रंग में रंगी नजर आती हैं।
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