-दिनेश ठाकुर
कुदरत के अपने कायदे हैं। वह अधिसूचना या अध्यादेश से संचालित नहीं होती। उसका हर दिन नया दिन होता है। हर रात नई रात। वह गुजरी तारीखें नहीं दोहराती। मीर हसन ने कहा है- 'सदा ऐश दौरां (काल) दिखाता नहीं/ गया वक्त फिर हाथ आता नहीं।' लेकिन गया वक्त फिर हाथ आ जाए तो? इस 'तो' के इर्द-गिर्द ब्रिटिश लेखक एच.जी. वेल्स ने 125 साल पहले दिलचस्प फंतासी उपन्यास रचा- 'द टाइम मशीन'। इसमें ऐसी मशीन की कल्पना की गई, जिसकी मदद से इंसान गुजरे जमाने की सैर कर सकता है। एक प्रोफेसर की प्रेमिका की हत्या कर दी जाती है। इसके कई साल बाद टाइम मशीन प्रोफेसर के हाथ लगती है। इसके जरिए वह पुराने जमाने में लौटकर प्रेमिका की हत्या टालने में कामयाब रहता है, लेकिन बाद में प्रेमिका घोड़ागाड़ी की चपेट में आकर मारी जाती है।
यह भी पढ़ें : किसान आंदोलन: क्या ग्रेटा थनबर्ग ने खोल दी खुद की 'पोल'? कंगना ने यूं कसा तंज
भारतीय 'टाइम मशीन' का टाइम बिगड़ा
'द टाइम मशीन' पर हॉलीवुड में कई फिल्में बन चुकी हैं। अपने यहां शेखर कपूर ( Shekhar Kapur ) ने 'मि. इंडिया' ( Mr India Movie ) के बाद 'टाइम मशीन' नाम की फिल्म बनाना शुरू किया था। किस्सा यह था कि एक वैज्ञानिक (विजय आनंद) टाइम मशीन बनाता है। नायक (आमिर खान) इस मशीन के जरिए पुराने जमाने में लौटकर अपने मृत माता-पिता (नसीरुद्दीन शाह, रेखा) से मिलता है। रवीना टंडन नायक की प्रेमिका का किरदार अदा कर रही थीं, जबकि 'मि. इंडिया' के मोगैम्बो (अमरीश पुरी) साजिश और मारधाड़ पर 'खुश होने' के लिए मौजूद थे। तीन चौथाई शूटिंग पूरी होने के बाद भारतीय 'टाइम मशीन' का टाइम बिगड़ गया। फिल्म 28 साल से अधूरी पड़ी है। अब इसके पूरे होने के आसार नहीं हैं।
'एक्शन रीप्ले' में फंतासी के नाम पर धुप्पल
'टाइम मशीन' की थीम पर विपुल शाह 2010 में 'एक्शन रीप्ले' बना चुके हैं। अक्षय कुमार और ऐश्वर्या राय बच्चन की मौजूदगी के बावजूद यह बचकाना फिल्म रही। इसमें फंतासी के नाम पर ऐसी धुप्पल ज्यादा दिखाई गई, जो हिन्दी फिल्मों की पुरानी बीमारी है। इसके मुकाबले सिंगीतम श्रीनिवास राव की तेलुगु फिल्म 'आदित्य 369' (1991) सलीकेदार फिल्म थी। इसका हिन्दी में डब संस्करण 'मिशन 369' नाम से सिनेमाघरों में पहुंचा था। इसमें अमरीश पुरी और टीनू आनंद ने भी अहम किरदार अदा किए। फिल्म का नायक टाइम मशीन के जरिए कभी 1526, तो कभी 2504 की दुनिया में पहुंच जाता है।
हॉलीवुड से प्रेरित फिल्में
हॉलीवुड वाले कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाने में माहिर हैं। उन्होंने सोचा कि जब टाइम मशीन से इंसान बीते वक्त में लौट सकता है, तो भविष्य में भी जा सकता है। इस थीम पर वहां कई फिल्में बन चुकी हैं। इनसे प्रेरित होकर भारत में भी 'लव स्टोरी 2050' (प्रियंका चोपड़ा, हरमन बावेजा) और 'बार-बार देखो' (कैटरीना कैफ, सिद्धार्थ मल्होत्रा) जैसी फिल्में बनाई गईं। अब राधिका आप्टे ( Radhika Apte ) और विजय वर्मा ( Vijay Verma ) को लेकर वेब सीरीज 'ओके कम्प्यूटर' ( OK Computer Movie ) बनाई गई है। इसके किरदार भविष्य की दुनिया में सैर करेंगे। अतीत अगर यादों का खजाना है, तो भविष्य उम्मीदों के लिए 'खुल जा सिम-सिम' है। बंद मुट्ठी ही लाख की होती है। शरर कश्मीरी का शेर है- 'जरा कल पर नजर रखना, जहां के रंग बदलेंगे/ नए किस्से बयां होंगे, नए किरदार निकलेंगे।'
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3jIE7E0
No comments: